विनातक तुम (The fruits of Surrender) – A Hindi Poem
यदि तुम कवि तो मैं काव्य बनी,
लिखकर मुझको खुद बांच चलो।
यदि तुम सागर जलवृंद हुई ,
जो मैं मोती तुम स्वातिबिन्दु।
मैं वाक्-प्रखर तुम महामौन,
मैं राग-प्रहर तुम साधक हो।
मैं भाव-प्रकट् तुम सूत्रधार,
यदि नटी बनी नट-नायक हो।
जो तप्त सिक्त झरता सावन,
जो मृदु चितवन तो आलिंगन ।
जो देह-देह तो प्राणाधन,
जो प्रेम अनघ तो प्रेमाघन।
यदि रचना पूर्ण रचयिता हो,
मेरे मन के अधिनायक तुम।
मेरे मन के अधिनायक तुम,
मेरे मन प्रण विनायक तुम।
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स्वातिबिन्दु: स्वाती नक्षत्र की पहली बूंद
वाक्-प्रखर: बड़बड़ करनेवाली
राग-प्रहर: प्रहर विशेष ने गाया जाने वाला राग
भाव-प्रकट्: अभिनेत्री
सिक्त: रेत
अनघ: शाश्वत्
विनायक: नियंता,नियोक्ता (one who controls and assigns)
नटीः नाटक की कलाकार
(The fruits of Surrender)