मैं तो अपने ही घर में अजनबी (I am a stranger in my own house)
A Hindi Poem
मैं तो अपने ही घर में अजनबी
ऐसा तो मैंने सोचा ना था कभी
मेरा साथी केवल मेरी अंतरात्मा
छोड़ कर चले गए हैं बाकी सभी|
मेरा कसूर क्या है, कोई बताता नहीं
मेरा पति भी नज़र मिलाता नहीं
मेरी क्या गलती है, मैंने सम्मान मांगा
क्या हम स्त्रियां मनुष्य नहीं?
तमन्नाएं तो हम बहुत लेकर आए थे
आशाओं के सुंदर सेज सजाए थे|
सपनों में हमने महल बहुत बनाए थे
आकांक्षाओं के फूल लड़ी में लगाए थे
यह क्या हुआ, यह क्यों हुआ
कोई हमें बताए नहीं
अपने भी हमसे रूठ गए,
भूल गए, जैसे हम पराए कहीं |
जो उन्होंने मांगा हमने दिया
जो उन्होंने कहा हमने किया
जो उन्होंने पिलाया हमने पिया
शाकाहारी होते, मांस भी चख लिया!
हम ना इधर के ना उधर के
जीवन तो अब हमें यहीं ही बिताना है
हारें या जीतें, कोई अंतर नहीं
बस मरने तक यहीं ठिकाना है |
गर हमारे पास कोई हुनर होता
हम कहीं नौकरी करते
समय कट जाता, पगार मिलती
दूसरों से हमारे सिलसिले चलते!
यह सिर्फ मेरी कहानी नहीं है
यह भारत की नारी की ज़ुबानी है
शायद किसी दिन यह स्थिति बदल जाएगी
परंतु इंतजार में हमारी जिंदगी निकल जाएगी।